अशोक आशीष की कविताएँ


 



1. भूख की तमाम् लड़ाईयाँ         


१)  

पुरापाषाण काल के आदिमानव से

नवपाषाण काल के ज्ञानीमानव तक

निष्कंटक कहाँ रही यात्रा

गुफाओं, कंदराओं से कूच कर

अरण्य के नि:स्सीम विस्तार में

कंद-मूल, फल-फूल, आखेट रुपी

तमाम् सरंजामों के बीच

शेष बची रही भूख.


भूख के बरक्स

जङ-चेतन के

अपने-अपने हिस्से थे

अपने-अपने किस्से थे.


२)

इतिहास ने बतलाया

लगभग चालीस हजार वर्ष पूर्व

ज्ञानीमानव ने सीखा था

अनाज उगाना,अर्थात

भूख को मात देने की कला

समय के रथ पर आरुढ

सभ्यता की तमाम् यात्राओं में

रोटी के समानान्तर

अक्षुण्ण रही भूख.


३)

वे आम हैं

घास-फूस की तरह से

किसी चट्टान पर

अवाँछित उगे हुए

वे लङ लेंगे

भूख की तमाम् लङाईयाँ

जैसे लङ लेते हैं और

जीत लेते हैं

तमाम् सफेदपोश

तिकङम से चुनाव.


४) 

वे भूखे हैं

कई-कई दिनों के

फिर भी माँग नहीं पाते

अमीरों की थालियों से

एक भी कौर

केवल देखते भर हैं

टकटकी लगाये अपलक.


५)  

वे वाकिफ हैं

क्षुधा की तमाम् पीङा से

उनकी निस्तेज आँखें

पिचके गाल

पीठ तक धँसी पेट

सहायक हैं

कुपोषण ग्रसित सरकारी आँकङों की

गणना में.


६)  हाईटेक बाजार

बेच लेता है

विज्ञापनों की चकाचौंध में

तमाम् असली-नकली माल

यह भी भला

भूख के खिलाफ

साजिश हो सकती है

कौन कहे ?


७)  इससे क्या फर्क पङता है

कि,

वे कौन हैं

जो भोज के भव्य आयोजनों में

कचङे के ढेर पर फेंके गये

जूठी पत्तलों से

इकट्ठा करते हैं जूठन

जहाँ एक ओर

भरपेट खाकर

उभर आये तोंद पर

हाथ फेरते

लम्बी डकार लेते

अघाये हुए लोग

और दूसरी तरफ 

भूख के मारे

जूठन पर आस लगाए

भूख से बिलबिलाए हुए लोग

उफ! कितनी चौङी है

और गहरी भी

भूख की खाई???


८)  सरकारें 

आती रहेंगी

जाती रहेंगी

बनाती रहेंगी

भूख के खिलाफ

योजनाएँ तमाम्.


९)  इतिहास साक्षी है

कि रोटी के लिए

लङी गई तमाम् लङाईयाँ

बदलकर रख देती है

हवा का रुख और इतिहास 

एक न एक दिन.

    ~~~

कवि: अशोक आशीष

पता - ग्राम- दूबेपाडा (निकट वीणापाणि हाई स्कूल)

नरसिंह बाँध, पोस्ट- बर्नपुर, आसनसोल, जिला-पश्चिम वर्द्धमान, पश्चिम बंगाल , पिन -713325.



Comments

Popular posts from this blog

प्रसाद के काव्य में सौंदर्य चेतना: डॉ. संध्या गुप्ता

प्रेम कुमार साव की कविताएँ