प्रेम कुमार साव की कविताएँ
१) किसान
उनके लिए सत्तर और अस्सी की
चप्पल
होती है मजबूत और टिकाऊ
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उन्हें पाँच सौ , हज़ार की
बाटा या एडिडास के जूते की आवश्यकता नहीं होती ।
खेत से मिलने वाली
फसल का अंतिम हिस्सा
होती है उनके लिए सबसे स्वादिष्ट
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उन्हें पिज़्ज़ा, बर्गर की
भूख नहीं होती ।
दूसरों के लिए अपना
सुबह-शाम न्योछावर कर देते हैं खेत में
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उन्हें रईसों
की तरह नींद नहीं आती।
उनके आँसुओं की क़ीमत
तुम नहीं समझोगे साहब
•
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उनके आँसुओं में
तुम्हारी तरह झूठ की बू नहीं होती ।
२) किसान और खेत
अच्छा सुनो न ...
मैं यदि न आऊँ किसी रोज़
तुम्हारे पास
तो क्या तुम मुझे याद करोगे
.
.
तुमसे मेरी साँसे चलती है
यदि तुम न आओगे तो मैं मर जाऊँगा
.
.
और हाँ सुनो ...
यह मरना प्रेमी-प्रेमिकाओं वाला मरना नहीं है
जो एक-दूसरे को डराने के लिए मरने की बात करते हैं
.
.
मेरा मरना सच का मरना है
जिसके बाद संसार का भी मरना तय हैं।
३) प्रेम
एक पुरुष से प्रेम करती है
तब उसका प्रेम
एक माँ के समान होता है
और वह अपने प्रिय को
सदा अपने करीब
रखना चाहती है।
...
जब एक माँ
अपने बच्चें से प्रेम करती है
तब उसका प्रेम
एक बच्चा जैसा होता है
और वह उसके प्रेम में
बच्चा बन जाती है।
...
जब एक पुरुष
एक स्त्री से प्रेम करता है
तब उसका प्रेम
एक दरख्त की
की तरह होता है
जो अपने प्रिय को
दु:ख,दर्द
जैसे हर थकान(श्रांति)में
छाँव देता है।
४) खूबसूरत हादसा
हादसा ही सही
पर
उस रोज
जब तुमसे मिला था
वह बहुत ही खूबसूरत हादसा था
और मैं उस पल
को अपने हिस्से में
सदा के लिए रख लिया हूँ
किसी अमूल्य धरोहर की तरह
...
फिर कभी
जब मैं तुम्हें सुनना चाहता हूँ
महसूस करना चाहता हूँ
तब मैं याद कर लेता हूँ
उस पल को, जिस पल
तुम और मैं
एक साथ थे
कुछ समय के लिए
और वह समय
कभी न बीत सकने वाली
सदा रहती है मेरे करीब, मेरे हृदय में
मेरे कल में , मेरे आज में
मेरे रूह में, मेरे अंत:करण में
और मेरे हर स्वप्न में
जिसमें तुम्हारा होना लाज़िमी है।।
५) और कुछ पल ही सही तुम्हारे हृदय में रह सकूँ...
तुम्हारे अतीत
का जो दर्द है
...
जिसे तुम
आज भी अपनी हृदय के अंत:करण
में छिपाई रहती हो
उस दर्द को, मैं
भी जीना चाहता हूँ
...
ताकि उस दर्द के बहाने ही सही
मैं तुम्हारे
हृदय के करीब आ सकूँ
और कुछ पल ही सही
तुम्हारे हृदय में रह सकूँ।।
६) एक पागल प्रेमी
जिस रोज मैं कभी भूले-भटके
तुम्हारे दर पर आ जाऊँगा
तुम मुझे मत पहचानना
और निकाल फेंकना उस दर से
किसी अनजान के भाँति
और मैं दोनों हाथों से
तुम्हारे इस प्यार को स्वीकार कर लूँगा
और चला जाऊँगा
किसी ऐसे जगह
जहाँ मैं रहूँ लोगों के बीच अनजान बनकर
सब मुझे पागल, मूर्ख कहे
किसी के प्यार में पड़े मजनू की उपाधि दे मुझे
धिक्कारते हुए अपने आंगन से बाहर निकाले
और मैं उस रोज तुम्हें अपने करीब पाऊँगा
और खुद में तुम्हें ढूँढूँगा
किसी पागल प्रेमी की तरह
पता है ..तुम नहीं मिलोगी
पर, हर उस बार स्वयं को
गले लगा लूँगा जब-जब
तुम मुझमें, मेरे अंदर
किसी भी कोने में मिलोगी....
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कवि- प्रेम कुमार साव
पता- कोटा चण्डीपुर , पूर्व बर्द्धमानन
{(वर्दवान विश्वविद्यालय में एम. फिल( हिंदी) शोध छात्र)}
Gmail- premkumarshaw657@gmail.com
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ReplyDeleteशुक्रिया ❣️
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