पुस्तक समीक्षा: 'सब खैरियत है' : मार्टिन जाॅन


 पुस्तक समीक्षा 


सब ख़ैरियत है’ : समाज की विद्रूपताओं को उजागर करती लघुकथाएं 

समीक्षक: डॉ. नीलोत्पल रमेश 


लघुकथा के उद्भव एवं विकास की बात जब भी प्रारंभ होती है, तो सबसे पहले हमारा ध्यान भारत के प्राचीन ग्रंथों पर जाता है , क्योंकि इसके उत्स वहीं दिखाई पड़ते हैं | इसके अलावे भी अनेक ग्रन्थ हैं ,जो लघुकथा को प्रमाणित करते हैं, भले ही इसका स्वरूप अलग है | ख्यात लघुकथाकार और रंगकर्मी स्व. नन्दल हितैषी ने लिखा है , ‘भारतीय परिवेश में कथाओं की एक पुरानी परंपरा है | उन लंबी लंबी कथाओं में स्वतंत्र रूप से तमाम उपकथाएं भी हैं जो मूल कथा को विस्तार देती हैं | इन्हीं उपकथाओं में जीवित हैं लघुकथाएं – कभी बोध देने के लिए , कभी उपदेश देने के लिए , कभी ज्ञान देने के लिए तो कभी व्यवस्था की बुराईयों को उद्घाटित करने के लिए | पुनः एक जगह पर स्व. हितैषीजी ने लिखा है , ‘भारतीय परिवेश की पौराणिक कथाएं , अंतर्कथाएं , बोधकथाएं , पंचतंत्र और हितोपदेश आदि की छोटी – छोटी कसी हुई कहानियां लघुकथाओं की  ऐतिहासिक स्त्रोत रही है |’ डॉ. कमल किशोर गोयनका ने इसे स्पष्ट करते हुए लिखा है , ‘यह सर्वविदित है कि प्राचीन काल में ‘लघुकथा’ का रूप मिलता है और वो लघुकथाएं पूरे जीवन का अंग नहीं थीं | उनका प्रयोग मनुष्य को संस्कारित करने के लिए किया जाता था | अर्थात् उनका मुख्य उद्देश्य यही था और वे सैकड़ों , हज़ारों वर्षों तक मानवीय स्मृति का अंग बनी हुई थीं |’ 

    हिंदी लघुकथा स्वतंत्र विधा के रूप में अपनी पहचान बना चुकी है | हिंदी में अनेक लघुकथाकार हैं जो सिर्फ़ लघुकथा का ही लेखन करते हैं | लगभग तीन चार दशकों से रचनारत मार्टिन जॉन हिंदी के सिद्धहस्त लघुकथाकार हैं | इन्होंने सूक्ष्म पर्यवेक्षण , दृष्टि के विस्तार , विषयवस्तु के सटीक चयन , कथ्य के कसाव , भाषा की किफ़ायतसारी और निरंतर शैल्पिक अभ्यास की बदौलत यह क्षमता हासिल की है | इसमें दो राय नहीं कि मार्टिन जॉन हिंदी के ऐसे लघुकथा लेखकों में शुमार किये जाते हैं जिन्होंने लघुकथा लेखन को बड़ी गंभीरता से आत्मसात किया है | आठवें दशक से ‘सारिका’ , ‘धर्मयुग’ , ‘हंस’ , ‘कथादेश’ , ‘वागर्थ’ , ‘नया ज्ञानोदय’ , ‘कथाक्रम’ जैसी हिदी की शीर्षस्थ , मुख्यधारा की पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होते रहने वाले  वाले मार्टिन जॉन के अब तक दो लघुकथा संग्रह – ‘ सब ख़ैरियत है ‘ और ‘फेसबुक लाइव’ प्रकाशित हो चुके हैं |  

लघुकथा संग्रह ‘सब ख़ैरियत है’ में मार्टिन जॉन की बासठ लघुकथाएं संग्रहित हैं | इन लघुकथाओं के माध्यम से मार्टिन जॉन ने हमारे समाज में व्याप्त बुराइयों को उजागर करने का कार्य किया है | इन्होंने  अपने आस-पास और परिवेश में जो कुछ भी देखा है , उसे ही अपनी लघुकथाओं में वाणी देने की कोशिश की है | ये लघुकथाएं हमारे समाज की विद्रूपताओं को उजागर करने में पूरी तरह समर्थ हैं | इनके माध्यम से हम आज का भारत और समाज को देख सकते हैं | इसमें हम सबका  चरित्र स्पष्ट दिखाई पड़ता है | आवश्यकता है , हमें अपने नज़रिये को बदलने की |

    मार्टिन जॉन की लघुकथाओं के बारे में प्रसिद्ध कवि-कथाकार अनवर शमीम ने लिखा है , ‘मार्टिन जॉन की लघुकथाओं में सघन बुनावट , शिल्प में निखार और विषय का विस्तार उनके स्वभाव और तेवर में बदलाव के संकेत को और भी पुख्ता करते हैं | साधारण –सी घटना में कोई बड़ी और काम की बात ढूंढ निकालना और फिर उसे उतनी ही ख़ूबसूरती के साथ लघुकथा में बयान कर देना , इन्हें एक सजग और सचेत कथाकार के रूप में स्थापित करता है |’

                      लघुकथा विषयक कई पुस्तकों के रचयिता , प्रखर विश्लेषक , मूर्धन्य लघुकथाकार डॉ. अशोक भाटिया ने मार्टिन जॉन की लघुकथाओं के सन्दर्भ में लिखा है , ‘मार्टिन जॉन की लघुकथाएं एक साथ सहज , सजग और सतर्क हैं | इनमें वर्तमान भारतीय समाज के विभिन्न पक्षों की रचनात्मक अन्विति इस प्रकार हुई है कि पाठक के लिए इन्हें पढ़ना एक समृद्ध अनुभव को पाने के सामान हो जाता है | तमाम लघुकथाएं लेखक की सजग दृष्टि का प्रमाण है |’

     मार्टिन जॉन ने अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त करते हुए पुस्तक के ‘दो टूक’  में कहा है , “.....निश्चित रूप से यह विधा दशकों की ज़द्दोज़हद के बाद मान्याता प्राप्त करने और अपनी अलहदा पहचान बनाने में सफल हुई है |.....यह स्वीकार करने में मुझे कतई संकोच नहीं कि मैं इस विधा का प्रबल पैरोकार हूं और बड़े बेबाकी से इस विधा के प्रति अपनी निष्ठा का उद्घोष करता हूं |’

      ‘सब ख़ैरियत है’ शीर्षक नामित लघुकथा से ही बात शुरू की जाए तो कहना पड़ेगा कि इस लघुकथा के माध्यम से कथाकार ने आपसी रिश्ते में आए बदलाव को उजागर किया है | दो दोस्त फ़ोन पर आपस में बातचीत करते हैं | दोनों की अपनी अपनी नानाविध परेशानियां हैं | बावजूद इसके ‘सब ख़ैरियत है’ को बार-बार दुहराते हुए एक दूसरे को सांत्वना देकर हल्का होने का प्रयास करते हैं | यानी अन्दर से स्वयं मजबूत होने का प्रमाण देते है |

     ‘डिलीट होते रिश्ते’ नामक लघुकथा के जरिये कथाकार ने परिवार में उपजी संवादहीनता की स्थिति का ज़िक्र किया है | मोबाइल ने हमें बहुत सारी सुविधाएं प्रदान की है | इसके सहारे हम अपने को विश्वग्राम का हिस्सा समझने लगे हैं | लेकिन इसने आपसी रिश्ते को भी मैसेज की भांति डिलीट किया है | इस लघुकथा में पति-पत्नी दोनों मोबाइल में मसरूफ़ रहते हैं | किसी के आने की सूचना पर दोनों इंतज़ार करते हैं कि वह उठे और आगन्तुक को रिसीव करे | जब कोई नहीं उठा तो घरेलू सेवक को दरवाजा खोलने को कहा जाता है  इस हिदायत के साथ कि आगंतुक को घर पर कोई मौजूद न होने की ख़बर दे दे | यह लघुकथा न सिर्फ़ पारिवारिक रिश्ते की संवेदनहीनता को उजागर करती है सामाजिक रिश्ते पर पड़ने वाले विपरीत प्रभाव को भी उद्घाटित करती है |

    बड़ी बड़ी कंपनियों के उत्पादों का विज्ञापन करने वाले खूबसूरत मॉडलों के लुभावने झूठ का पर्दाफाश कर असली सच को उद्घाटित करने वाली लघुकथा है ‘झूठ बिकता है’ | सच यही है कि जिन उत्पादों के विज्ञापनों के भ्रमजाल में फंसकर उन्हें इस्तेमाल करने को हम लालायित रहते है, उनको विज्ञापित करने वाले मॉडल निजी ज़िन्दगी में उनका प्रयोग कभी नहीं करते |

  ‘ख़बर की मौत’ पुलिस थाने से बुरी तरह दुत्कारे गए उस ग़रीब , निरीह , बेबस और भूखे व्यक्ति की कारुणिक कथा है , जिसे ख़बरों की दुनिया (पत्रकारिता जगत ) , राजनीति के धुरंधर अपने अपने स्वार्थ के लिए उसे  भुनाने से बाज नहीं आते | असंवेदनशीलता की पराकाष्ठा तब देखने को मिलती है जब स्थानीय रिपोर्टर ब्रेकिंग न्यूज़ के लिए उसकी मौत का इंतज़ार करता है | लेकिन परिस्थितियां ऐसी बनती हैं कि उसकी मौत नहीं होती और रिपोर्टर हाथ मलते हुए सुस्त क़दमों से इस तरह वापस लौटता है जैसे किसी शव के अंतिम संस्कार के बाद उसके आत्मीय शमशान घाट से वापस लौटते हैं | इस कथा में लेखक ने पुलिस , पत्रकार और राजनीतिबाजों के घिनौने चेहरों से रू-ब-रू कराया है |

    ‘बापू के आंसू’ लघुकथा देश की विभूतियों की मूर्तियों के निर्माण और उसके अनावरण की कड़वी हक़ीक़त का बयान करती है | बापू की आंखों से आंसुओं की अविरल धारा इसलिए बहती है कि उनकी प्रतिमा का निर्माण उन्हीं व्यक्तियों की मदद से हुआ है जो भ्रष्ट हैं , किसी – न – किसी रूप में अवैध धंधों में लिप्त हैं | बापू की प्रतिमा उस समय और अधिक आहत होती है जब उन्हीं भ्रष्ट राजनीतिबाजों के हाथों उसका अनावरण होता है | अंतिम पंक्तियां द्रष्टव्य है , ‘मेरा जी चाह रहा था कि बापू की आंखों से बहते आंसुओं को पोंछ दूं | लेकिन ऊंचे लोगों ने बापू की मूर्ति इतनी ऊंची शायद इस सोच के तहत बनवायी थी कि हम जैसे आम आदमी की पहुंच उस ऊंचाई तक कभी न हो |’

     लघुकथा ‘रामदुलारियों के सपने’ भारतीय समाज की पुरुषवादी सोच का कच्चा चिट्ठा है | इस संकीर्ण सोच के तहत बेटियों को पारंपरिक सपनों से हटकर कुछ अलहदा  किस्म के सपने देखने की मनाही है | यही वज़ह है कि सरकारी स्कूल में आयोजित गायन प्रतियोगिता में एक छात्रा द्वारा लीक से हटकर बेहतर गायन प्रस्तुति के बावजूद उसे पुरस्कार से वंचित कर दिया जाता है |

   नैतिक मूल्यों का तेज़ी से क्षरण होने की संघातिक व्यथा कथा है  ‘ये कौन सी डगर है’| समय  की विडंबना तो देखिए कि देश प्रेम और नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाले प्रधानध्यापक को उनका ही एक भूतपूर्व शिष्य अनैतिक कार्य के  लिए बाध्य करता है | यानी अपने फिसड्डी बेटे को परीक्षा में उतीर्ण करने के लिए उन पर दबाव डालता है |  विकट और प्रतिकूल परिस्थितियों में भी सहिष्णु होने का दावा और ढोंग करने वाले पाखंडी बाबाओं को बेनक़ाब करने वाली लघुकथा है ‘असहिष्णुता’|    धर्म से जुड़े उत्सवों का रूप-स्वरूप इस क़दर विकृत होता जा रहा है कि सामाजिक , सांस्कृतिक पतन होना निश्चित है | लघुकथा  ‘विसर्जन संस्कृति का’ में इसी बात की ओर संकेत किया गया है | विद्द्या की देवी सरस्वती की प्रतिमा विसर्जन के अवसर पर फूहड़ , अश्लील फ़िल्मी गीतों पर छात्र-छात्राओं का भद्दे ढंग से कुल्हे मटकाना , आपत्तिजनक हरकतें करना – ये कैसी भक्ति है ? कहां की संस्कृति है ?यही सवाल उठाया है लेखक |


    जिस घर में आपसी प्रेम ,सदभावना  और सामंजस्य न हो , वह घर हो ही नहीं सकता , चाहे वह कितना भी भव्य और विशाल क्यों न हो | भव्यता और विशालता किसी ‘शानदार’ घर का पैमाना नहीं हो सकता – इसी सच को दर्शाया गया है ‘घर’ नामक लघुकथा में | कृतघ्न पुत्रों द्वारा मरणासन्न उम्रदराज़ मां की उपेक्षा और अवहेलना की मार्मिक और विचलित कर देने वाली कथा है ‘निपटारा’ | नानाविध पारिवारिक समस्याओं का सहज ढंग से निपटारा करने वाली मां जब अस्वस्थ होकर मरणासन्न अवस्था में पहुंच जाती है ,तो अस्पताल से घर ले जाकर उनकी सेवा-सुश्रुषा करना बेटों के लिए एक बहुत बड़ी समस्या का रूप ले लेती है | अंततः मां अपनी आंखें सदा के लिए मूंद कर इस समस्या का निपटारा कर देती है | ‘सुपरस्टार’ लघुकथा में रीयल और रील लाइफ़ के ज़रिये पुरुष की स्त्री पर अधिकार जमाने की आदिम प्रवृति को कलात्मकता के साथ अनावृत किया गया है | तकनीक सभ्यता द्वारा मानवीय संवेदनाओं को जंग लगा लोहा बनाने की गाथा है ‘डिस्कनेक्ट’, जिसमें नयी पीढ़ी के अपने बुजुर्गों से दूर होने की व्यथा को अत्यंत मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया गया है | बाज़ार अब नियामक ताक़त के रूप में स्थापित हो चुकी है | ज़रूरतें पूरी करने के नाम पर ज़रूरतें पैदा करने तक बाज़ार की व्यापकता इस क़दर बढ़ गयी है कि उत्पादन से लेकर उपभोक्ता  की तलाश में बाज़ार की प्रक्रियाएं व्याप्त हो गयी हैं | धनतंत्र की राजनीति पर आधारित ‘बाज़ार’ के माध्यम से व्यापार की सूक्ष्म संभावनाओं को विस्तृत करने अर्थात् ‘बाजारीकरण’ के तमाम हथकंडों की जड़ तक पहुंचाती है लघुकथा ‘एक था सम्राट’ | परंपरागत मूल्यों की महत्ता दर्शाती लघुकथा ‘डिस्चार्ज’ कई सन्देश देती है | जैसे पाश्चात्य अवधारणा मोबाइल को क्षणभंगुरता और संवेदनहीनता के रूप में चित्रित किया गया है |वहीं  दूसरी ओर ‘शब्द-ब्रह्म’ पद के अनुसार शब्दों के महत्व को दर्शाया गया है |


       निष्कर्षतः यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि मार्टिन जॉन ने  आलोच्य संग्रह की लघुकथाओं में समाज और उसकी बहुविध समस्याओं का विविध आयामों में सशक्त चित्रण किया है | इन कथाओं में जहां एक ओर जीवन की विषमताओं और विसंगतियों को उभारा गया है वहीं दूसरी तरफ़ एक सकारात्मक लेखकीय दृष्टि भी है जो सड़ी-गली और भ्रष्ट आचरण को जड़ मूल से ही उखाड़ फेंकने की स्पष्ट सोच विकसित करती है | इन लघुकथाओं का कथ्य क्षेत्र मध्यमवर्गीय जीवन के आस-पास ही केन्द्रित है जिनमें समाज की अतृप्ति , संत्रास ,कुंठाओं , खोखलेपन , एकाकीपन और आडंबर को उभरा गया है | संकलित लघुकथाओं के पात्रों का चुनाव भी जीवन के बहुविध पक्षों से किया गया है , जिनको वर्गगत और जातीय विशेषताओं की प्रवृत्तियों से परिपूर्ण करके यथार्थ रूप प्रदान किया गया है | इस कारण इनमें व्यष्टि चिंतन और समष्टि चिंतन इस प्रकार घुलमिल गए हैं कि इन्हें अलग-अलग करके नहीं देखा जा सकता | परिणामतः  इन लघुकथाओं में व्यक्ति-सत्य और समाज-सत्य का सामान आग्रह दृष्टिगोचर होता है | 


          संग्रह में लेखक ने जन सामान्य की भाषा को अपनाया है और उसमें प्रतीकों और बिंबों से नया अर्थ उत्पन्न किया है | इन्होंने अपनी लघुकथाओं में भाषा रुपी ईंटों को इस करीने से सजाया है जिससे भवन-स्थापना के बाद नए ही अर्थ निकलते हैं | इनकी भाषा आधारभूत कथावस्तु , पात्र-योजना , शैली और वातावरण के अनुरूप है जिस वज़ह से भाषा में सरलता , स्वाभाविकता के दर्शन होते हैं जो  कृत्रिमता से कोसों दूर है |

        मार्टिन जॉन तबीयत से कलाकार हैं | इनके बनाए रेखाचित्र विभिन्न पत्रिकाओं में दशकों से ससम्मान प्रकाशित होते रहे हैं | इनकी पेंटिंग्स पुस्तकों , पत्रिकाओं के आवरण की शोभा बढ़ाती रही हैं | आलोच्य पुस्तक के आवरण में इनकी पेंटिंग की झलक देखी जा सकती है | इनकी कलाकारी संकलित लघुकथाओं में भी सहजता से परिलक्षित होती है , जिनमें समुद्र सी गंभीरता के साथ –साथ कामिनी की कमनीयता के दर्शन होते हैं | पुस्तक की छपाई साफ़-सुथरी और कलात्मक है | ***


पुस्तक :  सब ख़ैरियत है - लघुकथा-संग्रह 

लेखक : मार्टिन जॉन 

प्रकाशक : बोधि प्रकाशन , जयपुर , 

मूल्य :  200 रूपए , पृष्ठ :128, वर्ष - 2018 ई. 


संपर्क -  डॉ. नीलोत्पल रमेश 

पुराना शिव मंदिर , बुध बाज़ार ,

गिद्दी –ए  , जिला – हजारीबाग 

झारखण्ड - 829108

मो.  09931117537, 8709791120

Email-  neelotpalramesh@gmail.com

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