पुस्तक समीक्षा: तुम्हारा होना सच नहीं है/कृष्ण सुकुमार


                                                                पुस्तक समीक्षा 

                             प्रेम की परिभाषा को परिभाषित करती पुस्तक: तुम्हारा होना सच नहीं है!

कवि कृष्ण सुकुमार जी के काव्य संग्रह  ' तुम्हारा होना सच नहीं है! ' बोधि प्रकाशन
पुस्तक: तुम्हारा होना सच नहीं है 
द्वारा प्रकाशित एक पाठनीय पुस्तक है। इस पुस्तक में कवि ने प्रेम के होने या ना होने की वास्तविकता को बहुत ही सुंदरतापूर्वक प्रस्तुत किया है, कवि के इस काव्य संग्रह में अदृश्य प्रेम की कल्पनात्मक सृजन द्वारा सामाजिक शब्दावली के साथ-साथ सामाजिक रूपरेखा को बदलने की प्रमुख दृष्टि है।आजकल प्रेम जो हर गली,कस्बों में देखने को मिलता है यह वह प्रेम नहीं है जो क्षणिक हो, यह तो अनुभव के प्रेम को जागृत करती हैं। सुकुमार जी की कविता में प्यार के साथ-साथ करुणा व एक अदृश्य लगाव को भी स्थान दिया गया हैं जो बहुत कम पढ़ने को मिलता है। इस काव्य संग्रह में प्रेम की अस्सी कविताओं का संयोजन व लेखन कवि ने बखूबी किया है।
कवि के शब्दों में प्रेम की परिभाषा कुछ इस तरह हैं: "तुम्हारा होना सच नहीं है
फिर भी तुम हो, 
क्योंकि तुम्हारे हुए बगैर 
ढूंढा जाता है प्रेम
परिभाषाओं में... " 
प्रेम ही नहीं इस पुस्तक को पढ़ने के पश्चात यह लगता है कि कहीं न कहीं सभी प्रेमानुभवों के साथ-साथ हमारे समाज को भी कवि ने चिन्हित किया है जिससे हम सभी कहीं न कहीं किसी मोड़ पर टकराते हैं।
अंततः पुस्तक की आवरण बहुत ही उत्कृष्ट है। आवरण साज-सज्जा के साथ-साथ वर्तनी एवं मूल पृष्ठ भी अच्छी है।अतः यह पुस्तक बहुआयामी, समीक्षाअर्थ व पठनीय हैं।

पुस्तक: तुम्हारा होना सच नहीं है! 
कवि: श्री कृष्ण सुकुमार
प्रकाशक: बोधि प्रकाशन,जयपुर.
मूल्य: ₹150
समीक्षक: रोहित प्रसाद पथिक,(आसनसोल)
                                                     ●●●

■ समीक्षक : सम्पादक 



Comments

Popular posts from this blog

प्रसाद के काव्य में सौंदर्य चेतना: डॉ. संध्या गुप्ता

प्रेम कुमार साव की कविताएँ

अशोक आशीष की कविताएँ