पुस्तक समीक्षा: सॉफ्ट कॉर्नर

                                      ✍  डॉ. सीमा शर्मा

'सॉफ्ट कॉर्नर ' राम नगीना मौर्य का तीसरा कहानी संग्रह है , जिसमें उन्होंने दैनिक जीवन की साधारण घटनाओं को कहानियों की कथावस्तु बनाया है और उन सूक्ष्म अनुभवों को बड़ी प्रमाणिकता के साथ अंकित किया है ,जिन पर सामान्य जन ध्यान भी नहीं देते। लेकिन कथा पाठ करते समय पाठक लेखक की अनुभूतियों के साथ जुड़ता चला जाता है।लेखक ने कहीं संवाद शैली तो कहीं वर्णात्मक शैली को अपनाया है।कहानियों के सभी पात्र भी सामान्य पृष्ठभूमि से लिए गए हैं। उनके चरित्र इतने सजीव हैं कि उन्हें हम अपने आसपास के समाज में आसानी से देख सकते है ।इनमें कोई नायक या अनायक नहीं सब मेरे और आपके जैसे सामान्य मानव हैं।
लेखक की अपनी दुनिया है लेकिन उससे जुड़े उसके परिजनों की अपनी व्यवस्था तथा दोनों ही ओर से एक दूसरे की सीमाओं में अतिक्रमण ,जाने अनजाने होता ही है। यहीं से जन्म लेती है संग्रह की प्रतिनिधि कहानी 'सॉफ्ट कॉर्नर’।लेखक ने बहुत संतुलित शब्दों में दोनों पक्षों की मनः स्तिथि का चित्रण किया है। 'सॉफ्ट कॉर्नर ' वैसे तो पति पत्नी के बीच एक-दो घंटे चले संवाद की कहानी है लेकिन  इस कहानी में दो  पक्ष उभरकर सामने आते हैं । एक तो लेखक की दुनिया और दूसरा उसका परिवार । उदहारण के रूप में इन पंक्तियों को देखा जा सकता है - "अरे तुम्हे क्या पता कि लिखने के लिए क्या-क्या करना पढ़ता है ?अपने लिखे हुए एक-एक पन्ने को दसियों बार पढ़ते ,जरुरत पढ़नें पर काटते-फाड़ते दुरुस्त भी करना पड़ जाता है। पचीसों लेखकों की पचासों किताबें ,साथ ही समय-समय पर नियमित पत्र-पत्रिकाएं भी खरीदनी पड़ती हैं। दसियों जगह की सैर करनी पड़ती है। रिफ्रेंसेज आदि ढूंढने के लिए जाने कितने ही लोगों से कितनी बार मिलना पढ़ जाता है। और तो और ,उनसे मतलब की बात उगलवाने के लिए बहत्तरों की तरह लंतरानियां भी बतियानी पड़ती हैं। हर कविता-कहानी-उपन्यास की अपनी पृष्ठभूमि-कथाभूमि-भावभूमि होती है। पता नहीं कब कौन सा धड़ाम-धकेल आइडिया दिमाग में क्लिक कर जाए ?"(पृ.118 ) लेकिन गृहणी की अपनी समस्या है। लेखक के लिए जो व्यवस्था है गृहणी के लिए वही झंझट। यही 'सॉफ्ट कॉर्नर' का कथा बिंदु है,जिसे लेखक ने बहुत रुचिकर ढंग से प्रस्तुत किया है।
     ''अनूठा प्रयोग 'एक गृह प्रवेश के कार्यक्रम की कहानी है। यह कहानी किसी शब्द चित्र की तरह आगे बढ़ती है और अंत में एक बालक पर केंद्रित हो जाती है तथा बालमनोविज्ञान को समझने का प्रयास भी करती है। 'अख़बार का रविवासरीय पारिशिष्ट' कहानी भी लेखक के अनुभवों से जुड़ी है।  यदि किसी व्यक्ति की किसी विशेष वस्तु में रूचि है तो वह उसे पाने के लिए कितना परिश्रम कर सकता है ? वहीं किसी के लिए वही चीज़ व्यर्थ हो सकती है। इस कहानी में लेखक अख़बार के एक रविवासरीय पारिशिष्ट के लिए बहुत संघर्ष करता है लेकिन अतिरिक्त विस्तार के कारण प्रकरण कुछ नीरस हो जाते है। 'लोहे की जालियां' कहानी में लेखक ने गृहस्थ जीवन की छोटी-छोटी बातों को प्रभावी ढंग से वर्णित किया है जिसके कारण कहानी  के पात्र - सत्यजीत ,अमरींद्र,सुशांत और उनकी पत्नियों के चरित्र बहुत सजीव बन गए हैं। रामनगीना मौर्य ने इस कहानी में देने वाले और लेने वाले के व्यवहार को भी बहुत सूक्ष्मता के साथ चित्रित किया है।  'छुट्टी का सदुपयोग' कहानी एक कामकाजी पुरुष की आकांक्षाओं  और गृहस्थ जीवन की जिम्मेदारियों से जूझती स्त्री की उलझनों को परत-दर-परत खोलती है। एक सामान्य  से दिन की  साधारण सी कहानी के बहाने, लेखक ने स्त्री-पुरुष के मानस को समझने का प्रयत्न किया है। सबके साथ ऐसा हो यह आवश्यक नहीं क्योंकि व्यक्तिगत भिन्नताएं हर जगह हो सकती हैं।
'बेकार कुछ भी नहीं होता' कहानी की कथावस्तु इसके नाम के साथ ही अभिव्यक्त हो जाती है। ग्रामीण क्षेत्र में एक कहावत है 'एक दिन घूरे के भी दिन आते हैं' यह कहावत इस कहानी में चरितार्थ होती दिखाई देती है। कहानी 'बिना कैप के एक पैन' और 'दो पेंच' को लेकर बुनी गई है जिसके बहाने से लेखक ने ऑफिस के कार्यकलापों के साथ-साथ मानवीय व्यवहार भी अंकित किया  है। भूमंडलीकरण के इस दौर एवं नित नई तकनीक ने 'जेनरेशन गैप' को बहुत काम कर दिया है।पहले जहाँ 'जेनरेशन गैप' पंद्रह से बीस वर्ष था वहीं अब मात्रा चार वर्ष रह गया है। 'ग्लोब' कहानी में इसी 'जेनरेशन गैप' को रेखांकित किया गया है। इस नई तकनीक के समय में जब संचार के अनेक त्वरित माध्यम हैं, जिनसे कुछ ही क्षणों में पूरी दुनिया में कहीं भी संपर्क किया जा सकता है। ऐसे में चिट्ठियों की प्रासंगिकता कम होना स्वाभाविक है, लेकिन जब कोई पुराना  पत्र अचानक मिल जाये तो स्मृतियों में खोना स्वाभाविक है।'आख़िरी चिट्ठी' ऐसे ही क्षण की कहानी है। 'संकल्प' कहानी में अतिव्यय की आदत के कारण पति-पत्नी बीच होने वाली नोक -झोंक तो है ही , साथ ही कहानी अतिव्ययता कम करने के संकल्प साथ समाप्त होती है। आज ऐसे संकल्प की महती आवश्यकता है। दिनों-दिन बढ़ते  दिखावे की प्रवृति के  कारण  सामान्य लोगों का जीवन दुष्कर बनता जा रहा है।
निष्कर्षत: कहा जा सकता है कि ‘सॉफ्ट कॉर्नर’ सहज सरल भाषा में लिखा गया एक पठनीय कहानी-संग्रह है।लेखक को मेरी शुभकामनाएँ ! 
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कहानी संग्रह -सॉफ्ट कॉर्नर
लेखक -रामनगीना मौर्य
प्रकाशक- रश्मि प्रकाशन, लखनऊ
मूल्य -175 रुपये

समीक्षक: डॉ सीमा शर्मा
पता: L-235,शास्त्रीनगर ,मेरठ
पिन -250004  ( उ.प्र.)
मो  .9457034271
ई-मेल  – -sseema561@gmail.com
पुस्तक: साॅफ्ट काॅर्नर
लेखक: राम नगीना मौर्य 


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