एक बेनाम नाटक: सुदामा सिंह
नाटक
एक बेनाम नाटक
पात्र:
1.निर्देशक
2 नेताजी
रेखांकन:सम्पादक |
4 दर्शक नंबर दो 5 दर्शक - तीन
6 महिला
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(नाटक के प्रस्तुतीकरण की उद्घोषणा होती है। सभी पात्र प्रेक्षागृह मे दर्शकों के बीच बैठे हैं । मंच पर प्रकाश होता है। निर्देशक मंच पर आ कर लाइट मैन को आवश्यक निर्देश देता है। तभी ग्रुप का कोई व्यक्ति मंच पर आ कर निर्देशक के कान मे कुछ कहता है। निर्देशक एकदम से गंभीर हो जाता है । उसे नेपथ्य मे कुछ बुदबुदाते हुए ले जाता है। इधर नाटक शुरू होने मे विलंब के कारण हॉल में सीटियाँ बजानी शुरू हो जाती है।)
(भरी और उदास मन लिए निर्देशक वापस मंच पर लौटता है। स्टैंड-माइक को दुखी मन से पकड़ता है। हॉल मे कुछ देर के लिए सन्नाटा हो जाता है ।)
एक दर्शक - (सन्नाटे को तोड़ते हुए) इतना सन्नाटा क्यों है भाई? अरे कुछ तो बकिए।
दूसरा दर्शक - हाँ-हाँ भाई वैसे ही बड़ी देर कर दी जनाब आते-आते डाइरेक्टर साहब ।
तीसरा दर्शक- कोई गल्ल नहीं बादशाओ , चलेबुल होंदा। अप्णे नेता लोगां भी तो देर से आते हैं ।ओय काके चल शुरू कर अपना नाटक।
निर्देशक- (उदास मन से) क्या कहूँ ,कुछ कहा भी नहीं जाता मगर कहे बिना रहा भी नहैं जाता भाइयों और बहनो।
एक दर्शक - नहीं-नहीं कह डालिए। आखिर हम देखने सुनने ही तो आए हैं बंधु ।
दूसरा दर्शक- हाँ -हाँ वह कहते हैं न , दिल का हाल सुने दिल वाला .... ।
निर्देशक- बात यह है कि मुझे आप लोगों को आज निराश करते हुए हार्दिक दुख हो रहा है।
नेताजी - उसके तो हम आदी हो चुके हैं भैया। हमारी सरकारों ने आस-निराश के दो रंगों के बीच हमें खूब नाटक दिखाया ,अब आप दिखाएंगे तो कौन सा कमाल कर देंगे?
निर्देशक- अत्यंत खेद के साथ कहना पड़ता है कि आज हम अपने नाटक का मंचन करने में असमर्थ हैं।
दर्शक दो- अमां यह तो सरासर गैर-इंसाफ़ी है। हम लोगो के वक्त की जैसे कोई कीमत ही नहीं है।
नेताजी- हम लोगों को ऐसे लापरवाह आयोजकों के खिलाफ आंदोलन करना होगा जो मोटी रकम लेकर नाटक के नाम पर हमारा शोषण कर रहे हैं।
यह तो उपभोक्ता के अधिकारों का सरासर हनन है।
(सभी एक स्वर में )- बिलकुल सही कह रहे हैं नेताजी। तमाशा देखने आए थे ,खुद यहाँ तमाशा बने जा रहे हैं। क्या मज़ाक बना रखा है इस डाइरेक्टर के दुम ने ?
निर्देशक- नगर के कला प्रेमियो, ईश्वर के लिए ऐसा मत कहिए। याद कीजिये हमारे कलाकार पिछले लगभग 70 वर्षों से इस रंगमंच पर आपसब का मनोरंजन करते चले आ रहे है।
दर्शक 3- ओय काके तो आज क्या हो गया? कहीं मामला जी एस टी या नोटबंदी का तो नहीं होंदा ?
निर्देशक- ऐसा कुछ भी नहीं है।
दर्शक एक- अमा तो हुआ क्या ? प्रशासन ने परमिशन नहीं दिया होगा? कुछ तो बताइये ।
नेताजी - परमिशन तो चुटकी बजाते दिला सकता हूँ। जब कलेक्टर का तबादला करा सकता हूँ तो परमिशन मिलना कौन सा एवरेस्ट विजय करना है ?मज़ाक है, अपनी सरकार है।
निर्देशक- आप सब गलत समझ रहे हैं।
सभी- (एक साथ) अरे भाई तो सही आप ही समझा दीजिये। मान लेते है हमही लोग बेवकूफ हैं।
निर्देशक- प्रिय कला-प्रेमी दर्शकों, ऐसा मत कहिये। आप तो प्रणम्य हैं मेरे लिए। वास्तव में मेरे जीवन में कभी ऐसी दुखद घटना नहीं घटी।
सब दर्शक - लगता है बेचारे का कोई भाई भतीजा पुलवामा हमले मे शहीद हो गया है? अगर ऐसा हुआ है तो भाई हम सब इस दुख की घड़ी मे आप के साथ हैं और उस शहीद को सलाम करते है।
निर्देशक- महोदय, यदि ऐसा होता तो अपने को खुशकिस्मत समझता कि चलो हमारे किसी करीबी ने राष्ट्र-हित में अपने प्राणो की आहुति दी। याद होगा आप सबको कि पिछले पाकिस्तान-युद्ध मे जब मेरा भाई शहीद हुआ था तो भी मैंने श्रद्धांजलि स्वरूप अपने नाटक का मंचन किया था ।
दर्शक 3- - ओय काके फिर आज कौन सा आसमान टूट पड़ा?
निर्देशक- वास्तव में मित्रो आज हमारे नाटक की स्क्रिप्ट खो गयी है।
दर्शक एक- चलिये हो गया बंटाधार। जरा अपने को ठीक से देख लीजिये कि आपतो नही खो गए हैं?
दर्शक दो - यह तो वही हुआ जैसे आजकल सचिवालयों से जरूरी फाइल अक्सर खो जाती हैं या शार्ट सर्किट के हवाले कर दी जाती हैं।
निर्देशक- बंधुओ, ईश्वर के लिए मेरी मजबूरियों को समझने की कोशिश कीजिये। विपत्तियों का हमला अकेले नही होता है। अफसोस हमारे नाटक की नायिका का भी अपहरण कर लिया गया।
दर्शक दो- चलिये एक और ड्रामा। अमाँ इन हीरोइनों का कोई ठीक नही, यह न सही और सही, और न सही तो कोई और सही।
नेताजी- अमाँ दर्शकों की आंख में धूल क्यों झोंक रहे हो डायरेक्टर की दुम? यह तो खैरियत मनाओ की इस देश की जनता बहुत भोली है। दूसरी जगह होते तो इस स्टेज से धक्के मार कर बाहर कर देती। ( दर्शको को उकसाते हुए) भाइयो और बहनों देखते क्या हो? बढ़कर चढ़ जाओ स्टेज पर और धक्के मार कर बाहर कर दो इस महाठग को।
दर्शक 2- (हंसते हुए) वाह नेताजी क्या खूब छक्का मारा है। क्या मिसाल पेश की है? ठग महाठग मिलकर हम सब को ठग रहे हैं। (सब हंसते हैं)।
दर्शक 1- अरे यार बुरे फंसे। घरवाली चार बात अलग सुनाय गी। उसे भी बच्चों के साथ शॉपिंग करने जाना था।
दर्शक2- इससे बढ़िया तो दीपिका पादुकोण की धांसू फ़िल्म 'छपाक' देख लेते तो यह बोरियत तो न झेलनी पड़ती।
निर्देशक- जीवन की सच्चाई को आप सेलुलाइड की नकली तस्वीर में देंखना चाहते हैं? जीवन को जीवन्त देंखना है तो रंगमंच पर देखिए।यह बात अलग है कि दुर्भाग्यवश आज हम मुसीबतों के चक्रव्यूह में फंस गए हैं।
दर्शक 3- ओए काके तो दिखा न। हम यहां झक मारने आये हैं क्या?
( इतने में नेताजी तमतमाते हुए मंच पर चढ़ कर निर्देशक के हाँथ से माइक छीन कर बोलना शुरू करतेहैं)
नेताजी- भाइयों बहनों, बड़ा नाम सुना था। मगर जिसे समझा था खमीरा वह भसाकु निकला। इसने हम सबको धोखा दिया। इस पर तो मान हानि का दावा होना चाहिए। मैं आपसब से प्रार्थना करता हूँ कि इस बार नगरनिगम का अध्यक्ष मुझे बनाइये तो देखिए नगर ही नही बल्कि पूरे जनपद की काया पलट कर रख दूंगा। ऐसा नाटक दिखाऊंगा कि लोग देखते रह जाएंगे।
दर्शक एक- नेताजी हम नाटक देखने आए है आप का भाषण सुनने नहीं। चलो भाई हो गया नाटक।
(पार्श्व से चीखते हुए एक महिला अपने अस्त व्यस्त कपड़ो में आती है। हाल में सन्नाटा पसर गया।)
महिला-आप नाटक देखने आए है न? मैं ही हूँ इस नाटक की नायिका हूँ। नाटक तो अब शुरू होने जा रहा है,जिसके हीरो और कोई नही बल्कि हमारे आपके यह नेता जी होंगे।यह सही है कि मुझे किडनैप कर लिया गया था। देख रहे हैं मेरी दशा। मौका पा कर मैं पुलिस के पास रपट कराने गई मगर उन लोगो ने झिड़क दिया।
नेताजी- यह तो सरासर गलत है। मैं अभी मुख्यमंत्री जी को फोन लगाता हूँ।
महिला- (हंसते हुए) नाटक हम करते है लेकिन आप का नाटक लाजवाब है। (दर्शको से) तालियां पीटीए भाइयो और बहनों। ऐसा लाजवाब नाटक आपने कभी नही देखा होगा। जिसमें खलनायक ही नायक का सेहरा अपने सिर पर बांध रहा है ।
नेता जी- मतलब जनता जनार्दन की सेवा करने वाला ही मैं हूँ। नारी उत्थान और स्वच्छता अभियान के लिए कितने कार्य किये। क्यों भाइयो?
महिला- बिल्कुल। उसदिन किसी बहाने अपनी बेटी से मिलाने का बहाना बना कर मुझे अपने बंगले पर बुलाया था। घर मे न आपकी बीवी थी और न बेटी।मुझे एक फ़िल्म में मेन रोल देने का लालच दिया। जब मैंने कहा मैं थियेटर में ही अपना कैरियर बनाना चाहती हूं तो आप और आप के ड्राइवर ने मुझे इस तरह दबोच लिया जैसे कोई बाज अपने शिकार को दबोच लेता है। उसके बाद….
नेताजी- यह सरासर गलत है। मुझे फँसाने का दुष्चक्र है।
दर्शक एक- तो सही आप ही बता दीजिए नेता जी।
महिला- सच और सबूत मुझसे लीजिये मित्रों। (कमर से एक रुद्राक्ष की माला दिखाते हुए) इनसे पूछिये की यह किसकी है?
नेताजी- यह गलत है। माला किसी की हो सकती है?
महिला- बिल्कुल ठीक। मगर आपकी इन अंगुलियों पर पट्टी क्यों बंधी है?
नेताजी- व..वह..वह दरवाज़े में दब गई थी।
महिला- यह भी सवाल उठता है कि हर दरवाज़े पर नौकर होता है जो इनके आने जाने पर दरवाज़े खोलता बन्द करता है। फिर अंगुलियों के दबने का सवाल ही नही उठता है।
(दर्शको की ओर से) हाँ हाँ नेता जी सच बताइए न।
महिला- आपके परमप्रिय नेताजी क्या सच बताएंगे? आप लोग पट्टी खोल कर देखिए। मेरे दांत काटने के निशान मिलेंगे। जब यह लोग मुझे भीतरी दरवाज़े की तरफ जबरदस्ती ले जा रहे थे तो मैंने इनकी उंगलियों को चबा ली। फिर इसकी प्रताड़ना जो मुझे सहनी पड़ी उसको बयान नहीं कर सकती। पट्टी खोल कर आपमें से कोई देख सकता है।
परदर्शक तीन- अरे तुस्सी को तो थाणे पर रपट लिखाना चाहिए।
महिला- गई थी लेकिन आप लोग जानते है नेता और रसूखदारों के खिलाफ कौन सुनता है? अगर यही होता तो देश में रोज हत्या बलात्कार और किडनैपिंग होती?
दर्शक एक- मगर वह तो कहते हैं कि राज्य में अमन शांति है। हमारा एक ही उद्देश्य है सब का साथ सब का विकास और सब का विश्वास।
दर्शक- यह सरासर गैर इंसाफी है। हम लोग एस एसपी को फोन करते है।
नेताजी - आप लोग समझते क्यो नहीं?यह सब विरोधियों की चाल है। मुझे बदनाम करने की साज़िश है।
(पार्श्व से पकड़ो मारो ,ऐसे व्यभिचारी नेता देश की जनता का भला क्या करेंगे। पुलिस एक्शन क्यो नही लेती है। इंकलाब जिंदाबाद। हाल में बैठे तीनो दर्शक भी कूद कर स्टेज पर चढ़ कर नेता की तरफ बढ़ते है।)
दर्शक- (हाल में नारे लगाते हुए खड़े हो जाते है।)
निर्देशक- प्रिय दर्शको कृपया शांति बनाए रखे। कानून को अपने हाथ मे न ले।
धीरेधीरे लाइट मद्धम होती है। अंधेरा होता है।)
( बैकग्राउंड से घोषणा,)
आपलोग किसी तरह अशांति न फैलाये। नेताजी को हिरासत में ले लिया गया है। और महिला को मेडिकल के लिए ले जाने की व्यवस्था की जा रही है। यह घोषणा जिलाधिकारी की ओर से की जा रही है। बाहर फोर्स लगा दी गई है।
निर्देशक- आप की असुविधा के लिए हमे खेद है। यही था हमारा आज का नाटक ।
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नाटककार/लेखक: सुदामा सिंह
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