कविता: रोहित प्रसाद पथिक

आज के परिवेश को देखते हुए बहुत दिनों से सोच रहा था कि कुछ लिखूं... मगर समय नही हो पा रहा था, लेकिन आज कुछ लिखा हूँ.एक समसामयिक कविता... अवलोकनार्थ हेतु प्रस्तुत है;

                           // कविता//

1.मार डालने वाले विचारों को सलाम
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क्या...
यह हालात मुझे झूका देंगे
किसी सोफ्ट नामों की तरह
या अपने ही मुझे मिटा देगे
जैसे
मिटा दिये जाते हैं
माथे के कलंक को
धीरे से
समझना मुश्किल है
मैं समझना चाहता हूँ
तुम्हारे मौत का मतलब
आज भी अनजान हैं
मुंह के असंख्य निवाले

आज भी
जेम्स बॉन्ड हर घरों में दस्तक दे रहा है क्यों ?
समस्या के भीतर भी
समस्या बालतोड़ की तरह उपस्थित हैं
अपने साथ मवाद लिए
हम वाह्य प्रेसर तो डाल रहे है
मगर निर्रथक हैं यह प्रेसर
सोचो, विचारो और मार डालो
अपने तीन घंटे और बहत्तर बर्ष के आजादी को

मैं लिखूंगा
तुम्हारे भीतर एक कट्टर नाम
जो सिद्ध हुआ होगा
तुम्हारे अंदर के मानवीय विचारों से
सोचने पर भी
तुम सिर्फ तुम रहोगें
नहीं बन पाओगें
एक सार्थक वीर्य
जिसके किटाणु हमेशा ही
यह कटटरपंथी विचारधारा को
हमारे समक्ष जटिल विषाक्त का रूप धारण कर
रचेगा एक नव निर्वाचित प्रतिनिधि
और अंत होगा एक देश का...

©रोहित प्रसाद पथिक
आसनसोल, पश्चिम बंगाल.

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