समाज की विडम्बना को दर्शाती पुस्तक: "और कितनी निर्भया"



 कवि एवं लेखक श्री विनायक शर्मा जी की प्रकाशित उपन्यास " और कितनी निर्भया "  एक बहु आयामी व अतुल्यनीय उपन्यास हैं। लेखक अपने उपन्‍यास में समाज के शोषित नारी वर्ग, राजनीति,  आज की बलात्कारी युग व सामाजिक व्यथाओ पर  लेखनी के माध्यम से ध्यान आकृष्ट करनें का प्रयास किया है। इस उपन्‍यास में कुल तेरह भाग   हैं, जो विभिन्न दृष्टिकोण व मार्मिकता पर केन्द्रित है। 
                        लेखक ने समाज के प्रेम वासना मे लिप्‍त युवा नजरिया को दर्शाया हैं, जिससे आज के युवा अछूते नहीं है । इस उपन्यास में दो प्रमुख पात्र प्रिया व महेन्द्र हैं।       जो अनुभव, शिकायत, प्यार, नफ़रत और ऐसे अनगिनत जीवन के पहलूओ को प्रकाशित कर रहा हैं। लेखक ने मानवीय वर्ग के विकृत सोच पर भी गहन आघात किया है। उपन्यास को महत्वपूर्ण बनाने में आंचलिक भाषा व अन्य घटनाएँ आकर्षित करती हैं।
                अन्ततः पुस्तक की कवर पेज, आवर्तनी व पृष्ठ अति आकर्षनिय हैं। लेखक ने अपने शब्दों को बखूबी निखारे है। आपकी पुस्तक विश्वसनीय , आनंददायक, समीक्षार्थ,पाठनीय व अतुल्यनीय है।

किताब: " और कितनी निर्भया "
कवि: श्री विनायक शर्मा
प्रकाशक: रेडग्रैब बुक्स,इलाहबाद (ऊत्‍तर प्रदेश)
मूल्य: 175₹
समीक्षक: रोहित प्रसाद 'पथिक',(आसनसोल)

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